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Showing posts from January, 2020

रजिस्ट्रेशन शुल्क 2100/- मात्र (एक बार) देना है। औषधीय फ़सल का बीज़ निःशुल्क दिया जाएगा।

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संस्था द्वारा दिया जायेगा औषधीय खेती विकास संस्थान द्वारा निःशुल्क औषधीय फ़सल बीज़ वितरण योजना। यदि आप सक्षम है 100 किसानों को संस्थान से जोड़ सकने में तो आपका स्वागत है। सभी 100 किसान 5 किलोमीटर के दायरे से हो। आपके द्वारा उन 100 किसानों को निःशुल्क ,समयानुसार ,संस्थान द्वारा चयनित  औषधीय फ़सल का बीज़ निःशुल्क दिया जाएगा। यह योजना फ़सल दर फ़सल चलती रहेगी। इस योजना के भागीदार बनने के लिए आप सबसे पहले स्वयं को रजिस्टर्ड करवाये एवम अपने साथ अन्य 100 किसान भाइयों का रजिस्ट्रेशन करवाये। रजिस्ट्रेशन शुल्क 2100/- मात्र (एक बार) देना है। रेजिस्ट्रेशन के लिये लिंक पे क्लिक करें 👉Referral Link : : http://akvsherbal.com/login/signup.html?ref=AKVS00047 फेसबुक ग्रुप लिंक 👉 https://www.facebook.com/groups/556248168270450/ औषधीय खेती साउथ इंडिया ग्रुप 👉 https://chat.whatsapp.com/CfzLujeE1Uz19NFnuf8cRk औषधीय खेती टेलीग्राम ग्रुप 👉 https://t.me/joinchat/L6RvuFX_zWcVo1cT9ccDVw औषधीय खेती विकास संस्थान www.akvsherbal.com औषधीय खेती विकास

कार्यशाला // रेजिस्ट्रेशन 2100/-Rs

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कार्यशाला औषधीय खेती विकास संस्थान स्वयं से जुड़े किसानों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। नित नयी जानकारियों,योजनाओ के लिए,हमरीं कार्यशाला में शामिल होने के लिए , शिक्षण प्रशिक्षण के लिए आज ही संस्थान से जुड़िये। अतिशीघ्र महाराष्ट्र जिला हिंगोली वसमत में आयोजित। कार्यशाला में पाएंगे 👉 मॉडल फार्मिंग प्रोजेक्ट का साक्षात दर्शन (जिसमे एक किसान मात्र 1 एकड़ से मात्र 6 महीने में लागत फ्री खेती करते हुए प्रति वर्ष 1 लाख एवम अनुमानित दूसरे साल 3 से 5 लाख  कमा सकता है।) 👉 औषधीय खेती में संभावनाएं विषय पर परिचर्चा । 👉 स्वतंत्र औषधीय बाजार की जानकारी। 👉 प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण 👉 आधुनिक कृषि एवं विकास के मॉडल पर चर्चा। 👉 औषधीय खेती विकास संस्थान के विद्वानों से भेंट। संस्थान से जुड़े लोगों के लिए  निःशुल्क प्रवेश, नए लोगो के लिए शुल्क मात्र 2100/-  स्वयं के साथ साथ 2 नए सदस्यो के भी रजिस्ट्रेशन करवाने पर एक एकड़ के लिए एक औषधीय फ़सल के बीज़ निःशुल्क। कृषक बंधु की रुचि हो वे जल्द से जल्द सम्पर्क करें। साथ काम करने के इच्छुक व्यक्ति भी कॉल कर सकते

पुदीना (मेंथा) की खेती

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पुदीना (मेंथा) की खेती कैसे करे मेंथा की खेती बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, लखनऊ आदि जिलों में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर की जाती है। विगत कुछ वर्षों से मेंथा इन जिलों में जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है। इसके तेल का उपयोग सुगन्ध के लिए व औषधि बनाने में किया जाता है। भूमि एवं भूमि की तैयारी मेंथा की खेती क लिए पर्याप्त जीवांश अच्छी जल निकास वाली पी०एच० मान 6-7.5 वाली बलुई दोमट व मटियारी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। खेत की अच्छी तरह से जुताई करके भूमि को समतल बना लेते हैं। मेंथा की रोपाई के तुरन्त बाद में खेत में हल्का पानी लगाते हैं जिसके कारण मेन्था की पौध ठीक लग जाये। संस्तुत प्रजातियाँ

अनंतमूल Anantmul {"Hemidesmus Indicus"}

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अनंतमूल Anantmul इसे अन्य भाषाओं में  गौड़ीसर, उत्पल सारिका, ऊपरसाल, उपलसरी, काबरबेल, धूबरबेल, कालीबेल, इंडियन सार्रसा परीला  आदि नामो से जाना जाता है। ये औषधि भारत के सभी जगहों पर पाया जाता है। विशेषकर उत्तरी भारत में अवध से लेकर सिक्किम तक और दक्षिणी भारत में ये ट्रावरकोर और सिलौंग के पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाता है। अनंतमूल की पहचान Anantmul ki Pahchan अनंतमूल दो प्रकार की होती है एक सफ़ेद और दूसरी काली। सफ़ेद को गौरीसर और काली को कालीसर कहते है। इसकी लताये गहरे लाल रंग की होती है। पत्ते तीन-चार अंगुल लम्बे जामुन के पत्तो के सामान होते है। इन पत्तो को तोड़ने पर उनमे से दूध निकलता है। इन पत्तो पर सफ़ेद रंग की लकीरे होती है। इनके फलियों के पककर फट जाने पर इनमे से रुई निकलती है। इसकी जड़ लम्बी, गोल और टेढ़ी-मेढ़ी होती है। जड़ के ऊपर की छाल लाल रंग की होती है। जड़ के अंदर कपुरककरी के समान मनोहर सुगंध आती है। जिस जड़ो से ऐसी सुगंध आती है वही जड़े औषधि के काम लेने योग्य होती है। इसकी जड़ में एक उड़ने वाला सुगन्धित द्रव्य रहता है। इसी द्रव्य में औषधि के सारे गुण रहते है। अनंतमूल क