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जिरेनियम की खेती

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जिरेनियम की खेती कम पानी और जंगली जानवरों से परेशान परंपरागत खेती करने वाले किसानों के लिए जिरेनियम की खेती राहत देने वाली साबित हो सकती है। जिरेनियम कम पानी में आसानी से हो जाता है और इसे जंगली जानवरों से भी कोई नुकसान नहीं है। इसके साथ ही नए तरीके की खेती ‘ जिरेनियम ’ से उन्हें परंपरागत फसलों की अपेक्षा ज्यादा फायदा भी मिल सकता है। खासकर पहाड़ का मौसम इसकी खेती के लिए बेहद अनुकूल है। यह छोटी जोतों में भी हो जाती है। जिरेनियम पौधे की पत्तियों और तने से सुगंधित तेल                                                                                                                                       निकलता है। साधारण नाम जिरेनियम , रोज जिरेनियम वानस्पतिक नाम पेलार्गोनियम ग्रेवियोलेंस उन्नत किस्म सिम - पवन , बोरबन , सिमैप बयों जी -17 । प्रमुख रासायनिक घटक जिरेनियाल व एल - सिट्रोनेलाले। जलवायु जलवायु उपोष्ण , ठंड एवं शुष्क जलवायु। 25-30 डिग्री से तापक्रम

मोरिंगा ओलिफेरा [मूंनगा/सहजन ]

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मोरिंगा ओलिफेरा [मूंनगा/सहजन ] मुन्गा वृक्ष की खेती भारत में सबसे अधिक की जाती है। यह एक पौष्टिक सब्जी वाला वृक्ष है जिसके अनेक उपयोग भी है। यह दुनिया के सबसे उपयोगी वृक्षो में से एक माना जाता है। मुन्गा के वृक्ष के प्रत्येक हिस्से, जड़ से लेकर पत्तियों तक के लाभकारी गुण है। लगभग वृक्ष के संपूर्ण हिस्सों का उपयोग किया जाता है।  उपयोग:-   पत्तियों का उपयोग रक्तचाप और ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने, स्कर्वी, घाव, ट्यूमर और सूजन के उपचार में किया जाता है। जडों का उपयोग अपच, दस्त, पेट का दर्द, पेट फूलना, पक्षाघात, सूजन, बुखार और गुर्दे के उपचार में किया जाता है। बीज नसों के दर्द, सूजन और आंतरिक बुखार उपयोगी होते है। छाल से प्राप्त लाल गोंद दस्त के उपचार में प्रयोग करते है। तेल का उपयोग इत्र और केश प्रसाधन में किया जाता है। उपयोगी भाग  : जडें ,बीज, पत्तियाँ ,फलियाँ मुख्य रूप से इसकी दो प्रकार की खेती की जाती है :- पत्तियों की खेती :- प्रति एकड़   बीज:- सात किलो बीज 12000 से 15000 लागत अन्य लागत :- जुताई ,क्यारियां बनवाना ,गोबर खाद , बुवाई एवं निराई गुड़ाई की म

सफेद मूसली की खेती

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सफेद मूसली की खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष में (ज्यादा ठंडे क्षेत्रों को छोडकर) सफलता पूर्वक की जा सकती है। सफेद मूसली  को सफेदी या धोली मूसली के नाम से जाना जाता है जो लिलिएसी कुल का पौधा है। यह एक ऐसी “दिव्य औषधि“ है जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है सफेद मुसली एक महत्वपूर्ण रसायन तथा एक प्रभाव वाजीकारक औषधीय पौधा है। इसका उपयोग खांसी, अस्थमा, बवासीर, चर्मरोगों, पीलिया, पेशाब संबंधी रोगों, ल्यूकोरिया आदि के उपचार हेतु भी किया जाता है। हालांकि जिस प्रमुख उपयोग हेतु इसे सर्वाधिक प्रचारित किया जाता है। वह है-नपंुसकता दूर करने तथा यौनशक्ति एवं बलवर्धन। मधुमेह के उपचार में भी यह काफी प्रभावी सिद्ध हुआ है। सफेद मूसली उगाने के लिए  जलवायु  - सफेद मूसली मूलतः गर्म तथा आर्द्र प्रदेशांे का पौधा है। उंत्तरांचल, हिमालय प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के ऊपर क्षेत्रों में यह सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। सफेद मूसली के खेत की तैयारी  - सफेद मूसली 8-9 महीनें की फसल है जिसे मानसून में लगाकर फरवरी-मार्च में खोद लिया जात