मोरिंगा ओलिफेरा [मूंनगा/सहजन ]

मोरिंगा ओलिफेरा [मूंनगा/सहजन ]


मुन्गा वृक्ष की खेती भारत में सबसे अधिक की जाती है। यह एक पौष्टिक सब्जी वाला वृक्ष है जिसके अनेक उपयोग भी है। यह दुनिया के सबसे उपयोगी वृक्षो में से एक माना जाता है। मुन्गा के वृक्ष के प्रत्येक हिस्से, जड़ से लेकर पत्तियों तक के लाभकारी गुण है। लगभग वृक्ष के संपूर्ण हिस्सों का उपयोग किया जाता है। 
उपयोग:-  पत्तियों का उपयोग रक्तचाप और ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने, स्कर्वी, घाव, ट्यूमर और सूजन के उपचार में किया जाता है।
जडों का उपयोग अपच, दस्त, पेट का दर्द, पेट फूलना, पक्षाघात, सूजन, बुखार और गुर्दे के उपचार में किया जाता है।
बीज नसों के दर्द, सूजन और आंतरिक बुखार उपयोगी होते है।
छाल से प्राप्त लाल गोंद दस्त के उपचार में प्रयोग करते है।
तेल का उपयोग इत्र और केश प्रसाधन में किया जाता है।
उपयोगी भाग : जडें ,बीज, पत्तियाँ ,फलियाँ
मुख्य रूप से इसकी दो प्रकार की खेती की जाती है :-
पत्तियों की खेती :-
प्रति एकड़  

बीज:- सात किलो बीज 12000 से 15000 लागत
अन्य लागत :- जुताई ,क्यारियां बनवाना ,गोबर खाद , बुवाई एवं निराई गुड़ाई की मजदूरी
प्रति एकड़ पौधो की संख्या :- 20 हजार पौधे अनुमानित
पत्तो का उत्पादन :- प्रत्येक 3 /4  महीने में  कटाई ,
प्रति कटाई प्रति एकड़ अनुमानित 300 से 500 किलो [सुखी]
मुख्य प्रसंस्करण :- पत्तो को सुखना  और साफ करना
कीमत :- 40/- प्रति किलो  से 120/- तक
लाभ :- यदि सालाना उत्पादन 1000 किलो का भी माना जाये और कीमत यदि  औसत 50/- प्रति किलो भी माना जाये तो  50  हजार से  2 लाख रुपये सालाना कमाया जा सकता है ! [ यह न्यूनतम गणना  है ]
बाजार:- औषधीय खेती विकास संस्थान की और से बाजार उपलब्ध करवाया जायेगा।

आइये अब बात करते है इसकी फलियों की खेती के सम्बन्ध में ।
सामान्य रूप से सब्जी मंडी में बिक जाने वाला उत्पाद है और आज कल इसकी बाजार में बहुत मांग है।
प्रति एकड़
फलियों की खेती
पौधों की संख्या:- 500 से 1200
उत्पादन अवधी:- 8 से 10 महीने
उत्पादन चक्र:-  बारहमासी
लागत:- 12000/- से 15000/-
लाभ :- यदि प्रति एकड़ 1000 पौधो की गणना 10  किलो प्रति पौधे भी की जाये  तो 10000  किलो का उत्पादन आता है और कीमत यदि न्यूनतम 10/- प्रति किलो भी मानी जाये तो 1 लाख रुपये सालाना आसानी से कमाया  जा सकता है ! बिच में समसामयिक सब्जियों की खेती भी की जा सकती है !

सामान्य रूप से  इसकी खेती के इच्छुक  भाई यह समझते है की दोनों एक साथ किया जा  सकता है लेकिन ऐसा नहीं है ! दोनों की खेती का तरीका  अलग है ,बीज अलग है ,बाजार अलग है , अतः इस बात का ध्यान रखे !

औषधीय खेती विकास संस्थान 🙏नमस्कार दोस्तों🙏 सभी से अनुरोध है कि इस पोस्ट को ध्यान से पड़े।
 नोट:- उपरोक्त विवरण में लागत,आय,खर्च,समय आदि सामान्य रूप से ली जाने वाली फसल के आधार पर है जो मूल रूप से प्रकृति ,पर्यावरण एवं भौगोलिक परिस्थितियो पर निर्भर है।अतः आय को अनुमानित आधार पर दर्शाया गया है। जिसमे परिवर्तन (कम ज्यादा)हो सकता हैं।

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