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कंटोला / ककोड़ा / कंकेड़ा (खैक्सी) - Spine Gourd

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कंटोला / कंकेड़ा (खैक्सी) की खेती और फायदे कंटोला सदियों से भारत में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध और पोषण सब्जियों में से एक है।कंटोला गर्म और कम सर्द मौसम की फसल है। इस सब्जी की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए  27  से  32  डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है।यह सब्जी बिजाई के  70  से  80  दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है मिट्टी :  कंटोला को रेतीली दोमट और चीकनी भूमि पर  5.5  से  7.0  की  ph  में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी अच्छी तरह से जल निकासी और अच्छे कार्बनिक पदार्थों के साथ सर्वोत्तम हो। जलवायु :   कंटोला गर्म और कम सर्द मौसम की फसल है। इस सब्जी की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इस फसल को बेहतर विकास और उपज के लिए अच्छी धूप की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए  27  से  32  डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है। किस्में :   Indira kankoda i (RMF 37)  एक नई व्यावसायिक किस्म है ,  जिसे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया

चिरचिटा - Apamarga "Aspera"

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चिरचिटा पेट की लटकती चर्बी गलाता है तो सड़े हुए दाँतो की खाँच को भर देता है, ये गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 के लिए किसी वरदान से कम नहीनमस्कार दोस्तों एकबार फिर सेआपकाAll Ayurvedic में स्वागत है आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा(Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैंइस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्

मुषकदाना ( Abelmoschus Moschatus )

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                                मुषकदाना (एबलमोस्कस मोश्चेटस)                                                                                                                            

जैविक कीटनाशी दवाएं गौवंश पर आधारित

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गौवंश पर आधारित जैविक कीटनाशी दवाएं जैविक कीटनाशी दवा

जीवामृत बनाने की विधि

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जीवामृत : (एक एकड़ हेतु) सामग्री :- 1. 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर 2. 5 से 10 लीटर गोमूत्र 3. 2 किलोग्राम गुड या फलों के गुदों की चटनी 4. 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, मूंग) 5. 200 लीटर पानी 6. 50 ग्राम मिट्टी बनाने की विधि:- सर्वप्रथम कोई प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी लें फिर उस पर 200 ली. पानी डाले। पानी में 10 किलोग्राम गाय का गोबर व 5 से 10 लीटर गोमूत्र एवं 2 किलोग्राम गुड़ या फलों के गुदों की चटनी मिलाएं। इसके बाद 2 किलोग्राम बेसन, 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी या जंगल की मिट्टी डालें और सभी को डंडे से मिलाएं। इसके बाद प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी को जालीदार कपड़े से बंद कर दे। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं और यह 48 घंटे बाद तैयार हो जाएगा। अवधि प्रयोग : इस जीवामृत का प्रयोग केवल सात दिनों तक कर सकते हैं। सावधानियां :- प्लास्टिक व सीमेंट की टंकी को छाए में रखे जहां पर धूप न लगे। गोमूत्र को धातु के बर्तन में न रखें। छाए में रखा हुआ गोबर का ही प्रयोग करें। छिड़काव:- जीवामृत को जब पानी सिंचाई करते है तो पानी के साथ छिड़काव करें अगर पानी के साथ छिड़काव

दीमक प्रबंधन के उपाय – Brain

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                                   दीमक प्रबंधन के उपाय किसान फसलें उगाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन तमाम तरह के कीट , फसलों को चट कर जाते हैं। वैज्ञानिक विधि अपनाकर कीटनाशकों के बिना ही इनका नियंत्रण किया जा सकता है। इससे कीटनाशकों पर उनका खर्चघटेगा। खेत की मिट्टी से ज्यादा पैदावार पाने के लिए किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। फसलें उगाने में उन्हें काफी पैसे भी खर्च करना पड़ता है। लेकिन मिटट्ी में पनपने वाले कीड़े-मकोड़े जैसे दीमक आदि फसलों को चट कर जाते हैं। इन कीटों से फसलों को सुरक्षित रखने के लिए भी कीटनाशकों पर किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है। फसलें और कीट नियंत्रण के लिए वैज्ञनिक विधि अपनाकर किसान कीट नियंत्रण ज्यादा प्रभावी तरीके से कर सकते हैं। कीटों का फसलों पर असर :   दीमक पोलीफेगस कीट होता है ,यह सभी फसलो को बर्बाद करता है | भारत में फसलों को करीबन 45 % से ज्यादा नुकसान दीमक से होता है। वैज्ञनिकों के अनुसार दीमक कई प्रकार की होती हैं। दीमक भूमि के अंदर अंकुरित पौधों को चट कर जाती हैं। कीट जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। प्रकोप अधिक

ब्रोकली की खेती

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ब्रोकली की खेती से कमाइए लाखों ब्रोकली की खेती से किसान भाई लाखों की कमाई कर सकते हैं। खासकर बड़े शहरों के निकट के स्थानों पर इसकी खेती से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। आजकल स्वास्थ्य के लिए औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी मांग बढ़ती जा रही है। राजधानी दिल्ली में इंडियामार्ट जैसे माध्यम पर इसकी कीमत अच्छी खासी मिलती है। कुल मिलाकर बाजार में इसके भाव अच्छे मिलते हैं। इसकी खेती लगभग फूलगोभी की तरह होती है। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ठंड के मौसम में जबकि कश्मीर, हिमाचल और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में इसका बीज उत्पादन भी होता है। आजकल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा ब्रोकली की नई किस्में विकसित की गई हैं। ब्रोकली की खेती लिए मिट्टी एवं जलवायु - ब्रोकली की खेती के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु अच्छी रहती है। जबकि बलुई दोमट मिट्टी के अलावा यह अन्य कई प्रकार की मिट्टी में खेती के लिए अनुकूल है। ब्रोकली की किस्में - ब्रोकली की किस्में रंग के आधार पर तीन तरह से विभाजित हैं। हरी, सफेद और बैंगनी। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा ब्रोकली की किस्म पूसा ब

कालमेघ की खेती

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कालमेघ की खेती से कमाई डबल... कालमेघ एक बहुवर्षीय शाक जातीय औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है। कालमेघ की पत्तियों में कालमेघीन नामक उपक्षार पाया जाता है, जिसका औषधीय महत्व है। यह पौधा भारत एवं श्रीलंका का मूल निवासी है तथा दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। इसका तना सीधा होता है जिसमें चार शाखाएँ निकलती हैं और प्रत्येक शाखा फिर चार शाखाओं में फूटती हैं। इस पौधे की पत्तियाँ हरी एवं साधारण होती हैं। इसके फूल का रंग गुलाबी होता है। इसके पौधे को बीज द्वारा तैयार किया जाता है जिसको मई-जून में नर्सरी डालकर या खेत में छिड़ककर तैयार करते हैं। यह पौधा छोटे कद वाला शाकीय छायायुक्त स्थानों पर अधिक होता है। पौधे की छँटाई फूल आने की अवस्था अगस्त-नवम्बर में की जाती है। बीज के लिये फरवरी-मार्च में पौधों की कटाई करते है। पौधों को काटकर तथा सुखाकर बिक्री की जाती है . औषधीय गुण भारतीय चिकित्सा पद्वति में कालमेघ एक दिव्य गुणकारी औषधीय पौधा है जिसको हरा चिरायता, बेलवेन, किरयित् के नामों से भी जाना जाता है। भारत में यह पौधा पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्त