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रजिस्ट्रेशन शुल्क 2100/- मात्र (एक बार) देना है। औषधीय फ़सल का बीज़ निःशुल्क दिया जाएगा।

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संस्था द्वारा दिया जायेगा औषधीय खेती विकास संस्थान द्वारा निःशुल्क औषधीय फ़सल बीज़ वितरण योजना। यदि आप सक्षम है 100 किसानों को संस्थान से जोड़ सकने में तो आपका स्वागत है। सभी 100 किसान 5 किलोमीटर के दायरे से हो। आपके द्वारा उन 100 किसानों को निःशुल्क ,समयानुसार ,संस्थान द्वारा चयनित  औषधीय फ़सल का बीज़ निःशुल्क दिया जाएगा। यह योजना फ़सल दर फ़सल चलती रहेगी। इस योजना के भागीदार बनने के लिए आप सबसे पहले स्वयं को रजिस्टर्ड करवाये एवम अपने साथ अन्य 100 किसान भाइयों का रजिस्ट्रेशन करवाये। रजिस्ट्रेशन शुल्क 2100/- मात्र (एक बार) देना है। रेजिस्ट्रेशन के लिये लिंक पे क्लिक करें 👉Referral Link : : http://akvsherbal.com/login/signup.html?ref=AKVS00047 फेसबुक ग्रुप लिंक 👉 https://www.facebook.com/groups/556248168270450/ औषधीय खेती साउथ इंडिया ग्रुप 👉 https://chat.whatsapp.com/CfzLujeE1Uz19NFnuf8cRk औषधीय खेती टेलीग्राम ग्रुप 👉 https://t.me/joinchat/L6RvuFX_zWcVo1cT9ccDVw औषधीय खेती विकास संस्थान www.akvsherbal.com औषधीय खेती विकास

कार्यशाला // रेजिस्ट्रेशन 2100/-Rs

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कार्यशाला औषधीय खेती विकास संस्थान स्वयं से जुड़े किसानों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। नित नयी जानकारियों,योजनाओ के लिए,हमरीं कार्यशाला में शामिल होने के लिए , शिक्षण प्रशिक्षण के लिए आज ही संस्थान से जुड़िये। अतिशीघ्र महाराष्ट्र जिला हिंगोली वसमत में आयोजित। कार्यशाला में पाएंगे 👉 मॉडल फार्मिंग प्रोजेक्ट का साक्षात दर्शन (जिसमे एक किसान मात्र 1 एकड़ से मात्र 6 महीने में लागत फ्री खेती करते हुए प्रति वर्ष 1 लाख एवम अनुमानित दूसरे साल 3 से 5 लाख  कमा सकता है।) 👉 औषधीय खेती में संभावनाएं विषय पर परिचर्चा । 👉 स्वतंत्र औषधीय बाजार की जानकारी। 👉 प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण 👉 आधुनिक कृषि एवं विकास के मॉडल पर चर्चा। 👉 औषधीय खेती विकास संस्थान के विद्वानों से भेंट। संस्थान से जुड़े लोगों के लिए  निःशुल्क प्रवेश, नए लोगो के लिए शुल्क मात्र 2100/-  स्वयं के साथ साथ 2 नए सदस्यो के भी रजिस्ट्रेशन करवाने पर एक एकड़ के लिए एक औषधीय फ़सल के बीज़ निःशुल्क। कृषक बंधु की रुचि हो वे जल्द से जल्द सम्पर्क करें। साथ काम करने के इच्छुक व्यक्ति भी कॉल कर सकते

पुदीना (मेंथा) की खेती

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पुदीना (मेंथा) की खेती कैसे करे मेंथा की खेती बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, लखनऊ आदि जिलों में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर की जाती है। विगत कुछ वर्षों से मेंथा इन जिलों में जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है। इसके तेल का उपयोग सुगन्ध के लिए व औषधि बनाने में किया जाता है। भूमि एवं भूमि की तैयारी मेंथा की खेती क लिए पर्याप्त जीवांश अच्छी जल निकास वाली पी०एच० मान 6-7.5 वाली बलुई दोमट व मटियारी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। खेत की अच्छी तरह से जुताई करके भूमि को समतल बना लेते हैं। मेंथा की रोपाई के तुरन्त बाद में खेत में हल्का पानी लगाते हैं जिसके कारण मेन्था की पौध ठीक लग जाये। संस्तुत प्रजातियाँ

अनंतमूल Anantmul {"Hemidesmus Indicus"}

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अनंतमूल Anantmul इसे अन्य भाषाओं में  गौड़ीसर, उत्पल सारिका, ऊपरसाल, उपलसरी, काबरबेल, धूबरबेल, कालीबेल, इंडियन सार्रसा परीला  आदि नामो से जाना जाता है। ये औषधि भारत के सभी जगहों पर पाया जाता है। विशेषकर उत्तरी भारत में अवध से लेकर सिक्किम तक और दक्षिणी भारत में ये ट्रावरकोर और सिलौंग के पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाता है। अनंतमूल की पहचान Anantmul ki Pahchan अनंतमूल दो प्रकार की होती है एक सफ़ेद और दूसरी काली। सफ़ेद को गौरीसर और काली को कालीसर कहते है। इसकी लताये गहरे लाल रंग की होती है। पत्ते तीन-चार अंगुल लम्बे जामुन के पत्तो के सामान होते है। इन पत्तो को तोड़ने पर उनमे से दूध निकलता है। इन पत्तो पर सफ़ेद रंग की लकीरे होती है। इनके फलियों के पककर फट जाने पर इनमे से रुई निकलती है। इसकी जड़ लम्बी, गोल और टेढ़ी-मेढ़ी होती है। जड़ के ऊपर की छाल लाल रंग की होती है। जड़ के अंदर कपुरककरी के समान मनोहर सुगंध आती है। जिस जड़ो से ऐसी सुगंध आती है वही जड़े औषधि के काम लेने योग्य होती है। इसकी जड़ में एक उड़ने वाला सुगन्धित द्रव्य रहता है। इसी द्रव्य में औषधि के सारे गुण रहते है। अनंतमूल क

कंटोला / ककोड़ा / कंकेड़ा (खैक्सी) - Spine Gourd

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कंटोला / कंकेड़ा (खैक्सी) की खेती और फायदे कंटोला सदियों से भारत में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध और पोषण सब्जियों में से एक है।कंटोला गर्म और कम सर्द मौसम की फसल है। इस सब्जी की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए  27  से  32  डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है।यह सब्जी बिजाई के  70  से  80  दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है मिट्टी :  कंटोला को रेतीली दोमट और चीकनी भूमि पर  5.5  से  7.0  की  ph  में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी अच्छी तरह से जल निकासी और अच्छे कार्बनिक पदार्थों के साथ सर्वोत्तम हो। जलवायु :   कंटोला गर्म और कम सर्द मौसम की फसल है। इस सब्जी की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इस फसल को बेहतर विकास और उपज के लिए अच्छी धूप की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए  27  से  32  डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है। किस्में :   Indira kankoda i (RMF 37)  एक नई व्यावसायिक किस्म है ,  जिसे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया

चिरचिटा - Apamarga "Aspera"

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चिरचिटा पेट की लटकती चर्बी गलाता है तो सड़े हुए दाँतो की खाँच को भर देता है, ये गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 के लिए किसी वरदान से कम नहीनमस्कार दोस्तों एकबार फिर सेआपकाAll Ayurvedic में स्वागत है आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा(Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैंइस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्

मुषकदाना ( Abelmoschus Moschatus )

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                                मुषकदाना (एबलमोस्कस मोश्चेटस)                                                                                                                            

जैविक कीटनाशी दवाएं गौवंश पर आधारित

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गौवंश पर आधारित जैविक कीटनाशी दवाएं जैविक कीटनाशी दवा

जीवामृत बनाने की विधि

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जीवामृत : (एक एकड़ हेतु) सामग्री :- 1. 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर 2. 5 से 10 लीटर गोमूत्र 3. 2 किलोग्राम गुड या फलों के गुदों की चटनी 4. 2 किलोग्राम बेसन (चना, उड़द, मूंग) 5. 200 लीटर पानी 6. 50 ग्राम मिट्टी बनाने की विधि:- सर्वप्रथम कोई प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी लें फिर उस पर 200 ली. पानी डाले। पानी में 10 किलोग्राम गाय का गोबर व 5 से 10 लीटर गोमूत्र एवं 2 किलोग्राम गुड़ या फलों के गुदों की चटनी मिलाएं। इसके बाद 2 किलोग्राम बेसन, 50 ग्राम मेड़ की मिट्टी या जंगल की मिट्टी डालें और सभी को डंडे से मिलाएं। इसके बाद प्लास्टिक की टंकी या सीमेंट की टंकी को जालीदार कपड़े से बंद कर दे। 48 घंटे में चार बार डंडे से चलाएं और यह 48 घंटे बाद तैयार हो जाएगा। अवधि प्रयोग : इस जीवामृत का प्रयोग केवल सात दिनों तक कर सकते हैं। सावधानियां :- प्लास्टिक व सीमेंट की टंकी को छाए में रखे जहां पर धूप न लगे। गोमूत्र को धातु के बर्तन में न रखें। छाए में रखा हुआ गोबर का ही प्रयोग करें। छिड़काव:- जीवामृत को जब पानी सिंचाई करते है तो पानी के साथ छिड़काव करें अगर पानी के साथ छिड़काव

दीमक प्रबंधन के उपाय – Brain

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                                   दीमक प्रबंधन के उपाय किसान फसलें उगाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन तमाम तरह के कीट , फसलों को चट कर जाते हैं। वैज्ञानिक विधि अपनाकर कीटनाशकों के बिना ही इनका नियंत्रण किया जा सकता है। इससे कीटनाशकों पर उनका खर्चघटेगा। खेत की मिट्टी से ज्यादा पैदावार पाने के लिए किसानों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। फसलें उगाने में उन्हें काफी पैसे भी खर्च करना पड़ता है। लेकिन मिटट्ी में पनपने वाले कीड़े-मकोड़े जैसे दीमक आदि फसलों को चट कर जाते हैं। इन कीटों से फसलों को सुरक्षित रखने के लिए भी कीटनाशकों पर किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है। फसलें और कीट नियंत्रण के लिए वैज्ञनिक विधि अपनाकर किसान कीट नियंत्रण ज्यादा प्रभावी तरीके से कर सकते हैं। कीटों का फसलों पर असर :   दीमक पोलीफेगस कीट होता है ,यह सभी फसलो को बर्बाद करता है | भारत में फसलों को करीबन 45 % से ज्यादा नुकसान दीमक से होता है। वैज्ञनिकों के अनुसार दीमक कई प्रकार की होती हैं। दीमक भूमि के अंदर अंकुरित पौधों को चट कर जाती हैं। कीट जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। प्रकोप अधिक