पामारोसा, गंधबेल घास, रोशा घास




श्रेणी (Category) : सगंधीय
समूह (Group) : वनज
वनस्पति का प्रकार : शाकीय
वैज्ञानिक नाम : क्य्म्बोपोगों मार्तिनी
सामान्य नाम : पामा रोसा

उपयोग :
 इसका उपयोग इत्र बनाने में, विशेष रूप से तम्बाकू को स्वादिष्ट बनाने में और साबुन में सम्मिश्रण के रूप में किया जाता है।
उपयोगी भाग :
 पत्तियाँ
उत्पादन क्षमता :
 220-250 कि.ग्रा./हे. तेल
वितरण : पामारोजा का तेल फूलों के शूट्स से प्राप्त होता है। इसे रोसा घास या रूसा घास भी कहा जाता है और इसके तेल में उच्च सिरेप्रियल (75.90%) पाया जाता है जिसके कारण इसे जिरेनियम तेल या रूसा तेल कहा जाता है। पामरोजा का तेल सबसे महत्वपूर्ण आवश्यक तेलों में से एक हैं।
  वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत (Taxonomy)
कुल : पोऐसी
आर्डर : पोएलेस
प्रजातियां :
 स्यमबोपोगन मार्टिनी स्टाँफ वर मोटिया
 सी. मार्टिनी स्टाँफ वर सोफिया
वितरण :
पामारोजा का तेल फूलों के शूट्स से प्राप्त होता है। इसे रोसा घास या रूसा घास भी कहा जाता है और इसके तेल में उच्च सिरेप्रियल (75.90%) पाया जाता है जिसके कारण इसे जिरेनियम तेल या रूसा तेल कहा जाता है। पामरोजा का तेल सबसे महत्वपूर्ण आवश्यक तेलों में से एक हैं।

स्वरूप :
 यह एक खुशबूदार बारहमासी घास है।
पत्तिंया :
 पत्तियाँ रैखिक, भालाकार, हद्याकार, 8.50 से.मी. लंबी, 1-3 से.मी. चौड़ी होती है।
फूल :
 पुष्पगुच्छों में होते है।
 पुष्पगुच्छ 10-30 से.मी. के और लाल रंग के होते है परन्तु परिपक्व होने पर अक्सर चमकीले लाल रंग के हो जाते है।
फल :
 फल दिसम्बर – जनवरी माह में आते हैं।
परिपक्व ऊँचाई :
 यह 150-200 से.मी. की ऊचाँई तक बढ़ सकता है।
  
 बुवाई का समय (Sowing-Time)
जलवायु :
 पामारोजा गर्म उष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है।
 इसके लिए अनुकूल तापमान 30-400 C होता है।
 पर्याप्त धूप के साथ 150 से.मी. के आसपास वर्षा इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।
भूमि :
 अच्छी तरह से सूखी, चिकनी बुलई मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।
 इसे अच्छी जल निकासी के साथ मटियार मिट्टी में भी उगाया जा सकता है।
 मिट्टी का pH मान 6-7 होना चाहिए।
 pH मान 8.5 से अधिक लेने पर पौधे का विकास कम हो जाता है। परिणाम स्वरूप तेल की उपज घट जाती है।
  बुवाई-विधि (Sowing-Method)
भूमि की तैयारी :
 मानसून की शुरूआत से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार किया जाता है।
 हल और हेरो चलाकर खेत की अच्छी तरह जुताई की जाती है।
 सभी प्रकार का चारा और खरपतवार को जड़ से हटा दिया जाना चाहिए।
 अंतिम जुताई के समय मिट्टी में 10 टन/हेक्टेयर की दर से FYM मिलया जाता है।
फसल पद्धति विवरण :
 पामारोजा को बीजों के माध्यम से लगाया जा सकता है।
 बीजों को रेत के साथ मिलाकर 15-20 से.मी. की दूरी पर पक्तियों में लगाया जाता है।
 बीजों को रेत और खाद की एक पतली परत के साथ ढ़क दिया जाता है।
 खेत को पानी के छिड़काव द्दारा नम रखा जाता है।
 एक हेक्टेयर भूमि में 2.5 कि.ग्रा. बीजों की आवश्यकता होती है।
 रोपाई का आदर्श समय अप्रैल – मई माह होते है।
रोपाई (Transplanting) :
 4 सप्ताह के बाद अंकुरित पौधे प्रतिरोपण के लिए तैयार हो जाते है।
 अंकुरित पौधों के जून – जुलाई के महीने में पहले से तैयार किए गये खेत में प्रतिरोपित किया जाता है।
 अगर मौसम बहुत गर्म नहीं है और तो इसे पहले भी प्रत्य़ारोपित किया जा सकता है।
 अंकुरित पौधे को पक्ति में 60 से.मी. की दूरी पर और 15 से.मी. की गहराई में लगाया जाता है।
 60X30 से.मी. और 30X30 से.मी. दूरी रखने पर उच्च पैदावार होती है।

नर्सरी बिछौना-तैयारी (Bed-Preparation) :
 मई माह में नर्सरी बेड्स तैयार की जाती है।
 बेड्स में FYM की पर्याप्त मात्रा मिलाई जाती है।
 चूकि बीज छोटे और हल्के होते है। इसीलिए बीजों को मिट्टी के साथ 1 : 10 के अनुपात में मिलाया जाता है ताकि बुवाई में बीज एक समान रूप से वितरित हो सके और बुवाई में सरलता रहे।
 बीजों को 15-20 से.मी. की दूरी पर पंक्ति में बोया जाता है।
 एक हेक्टेयर के लिए 2.5 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होते है।
 बेड्स को हल्के और नियमित रूप से सिंचित किया जाता है।
रोपाई की विधि :
 अंकुरण दो सप्ताह के भीतर शुरू होता है।
 अंकुरित पौधे 3 से 4 सप्ताह के बाद प्रतिरोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
   उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती (Farming Production Technology)
खाद :
 उपजाऊ भूमि में दो वर्षो तक खाद की आवश्यकता नहीं होती है।
 उर्वरक की कमी वाली मिट्टी में 20 कि.ग्रा. N, 50 कि.ग्रा. P2O5 और 40 कि.ग्रा. KO2 प्रति हे. की मात्रा आधारीय खुराक के रूप रोपाई के समय दी जाती है।
 प्रत्येक कटाई के बाद 40 कि.ग्रा./हे की दर से N की मात्रा तीन विभाजित खुराको में दी जाती है ।
 प्रत्येक वर्ष ताजी पत्तियों के आने पर N, P और K का मिश्रण दिया जाना चाहिए।
 FeSO4 और M4SO4 का छिड़काव करने से पौधे के विकास और तेल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
सिंचाई प्रबंधन :
 सिंचाई जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
 विकास के दौरान पामारोजा को सिंचाई की आवश्यकता होती है।
 पानी की पर्याप्त आपूर्ति से वृध्दि प्रचुर होती है।
 यह सूखे को सहन नहीं कर सकता है।
 सूखे की स्थिति में पत्तियाँ सूख जाती है। तेल की मात्रा कम हो जाती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन :
 नियमित निंदाई और गुड़ाई द्दारा खेत को खरपतवार से मुक्त रखा जाता है।
 इसे विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है ताकि खरपतवार घास को दवा न दे।
 डीयूरोम (1.5 कि.ग्रा./हे), आइसोप्रोट्ररोन (0.25 कि.ग्रा./हे) और आक्सीफ्लूओफेन (कि.ग्रा./हे) की दर से खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
तुडाई, फसल कटाई का समय :
 आवश्यक तेल घास के सभी भागों में वितरित होता है।
 घास को तब काटा जाता है जब वह 4 महीने पुरानी हो जाती है।
 प्राय: घास को जमीन से 5-8 से.मी. की ऊचाँई पर काटा जाता है और फिर उसे आसवित किया जाता है।
 जब पौधे में पूर्ण रूपेण फूल खिले होते है तब तेल की उपज अधिकतम प्राप्त होती है।
 पहली कटाई सितम्बर – अक्टूबर में की जाती है।
 सिंचित क्षेत्रों में कटाई सिंतम्बर – अक्टूबर, फरवरी – मार्च और मई जून में की जाती है।
 क्रमागत वर्षो मे 2-3 बार कटाई की जा सकती है।

फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन (Post-Harvesting & Value-Addition)
आसवन (Distillation) :
 पामारोजा का तेल आम तौर पर जल आसवन द्दारा प्राप्त किया जाता है।
 यह प्राचीन प्रक्रिया है और तेल की गुणवत्ता इस विधि से प्रभावित होती है। अत: भाप आसवन विधि उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
 तेल की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए और तेल की सुगमता के लिए घास को छोटे – छोटे टुकडों में काटा जाता है।
भडांरण (Storage) :
 फसल को सूखे स्थान में भंडारित करना चाहिए।
 गोदाम घास के भंडारण के लिए आदर्श होते है।
 शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है।
परिवहन :
 सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
 दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
 परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :
 पामारोजा तेल

औषधीय खेती विकास संस्थान 🙏नमस्कार दोस्तों🙏 सभी से अनुरोध है कि इस पोस्ट को ध्यान से पड़े। 
 नोट:- उपरोक्त विवरण में लागत,आय,खर्च,समय आदि सामान्य रूप से ली जाने वाली फसल के आधार पर है जो मूल रूप से प्रकृति ,पर्यावरण एवं भौगोलिक परिस्थितियो पर निर्भर है।अतः आय को अनुमानित आधार पर दर्शाया गया है। जिसमे परिवर्तन (कम ज्यादा)हो सकता हैं।

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