पी सी ओ एस (PCOS-Polycystic Ovarian Syndrome) आयुर्वेदिक नुस्खे
इस बीमारी का कारण वास्तव में नही पता चला है. परंतु आजकल की भागदौड़ भरी दुनिया में स्त्रीयो में यह रोग बढ़ता जा रहा है. आम तौर पर पाया गया है जिन स्त्रीयो में हार्मोन संबंधी असंतुलन पाया जाता है उनमें यह तकलीफ़ विशेष रूप से देखने को मिलती है. पी सी ओ एस के रोग में महिलयों की अंडाशय (ovaries) से अंड्रोगेन यानि कि मर्दों में पाया जाने वाला हारमोन अधिक मात्रा में बनता है. इसका संबंध इंसुलिन हॉर्मोन (insulin hormone) के असंतुलित रूप से स्रावित होने को भी माना जाता है.
इस रोग से ग्रस्त महिलयों की ओवारीस में बहुत सारी सिस्ट्स (cysts) अर्थात की झिल्लियाँ पाई जाती हैं. ये झिल्लियाँ अगर बढ़ कर तैयार अंडकोषों के ऊपर भी बन जाएँ तो इससे मासिक स्राव में रुकावट और बांझपन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है. माना जाता है की जो स्त्रीयाँ बहुत अधिक तनावग्रस्त होती हैं या फिर जो रात्रि में ठीक से सो नही पाती, उनमें इंसुलिन हॉर्मोन के असंतुलन के साथ-साथ यह बीमारी होने की संभावना भी अधिक होती है.
पी सी ओ एस के लक्षण:-
मुहाँसे, तैलीय त्वचा
अंडाशय का आवश्यकता से अधिक बढ़ा हुआ आकार जिसमें अनेक सिस्ट्स हो या फिर बहुत अधिक
अंडकोषों का विभिन्न प्रकार की अवस्था में तैयार होना. ग्रस्त अंडाशय (ovary) पर सीवन अथवा घाव का चिन्ह भी मौजूद पाया जाता है जिसके साथ एक झिल्लिदार परत भी होती है.
मासिक धर्म में बहुत कम स्राव अथवा मासिक धर्म का ना होना.
अंडकोषों में परिपक्वता ना होना या बांझपन.
अनियमित माहवारी.
शरीर पर बहुत अधिक बालों का होना.
शरीर में इंसुलिन का काम ना करना.
वज़न का बढ़ना, और वज़न घटाने में अत्याधिक मुश्किल.
गर्दन और चेहरे पर गहरी रंगत.
आयुर्वेदीय उपचार:-
उपचार का मौलिक सिद्धांत है कटि के क्षेत्र में अवरोध को घटाकर चयपचय को संतुलित करना, सफाई का ध्यान रखते हुए माहवारी को नियमित बनाना.
आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग से शरीर में अंड्रोगेन हारमोन की मात्रा को घटाया जाता है, संपूर्ण अंतःस्त्रावी तंत्र को संतुलित कर अंडाशय की कार्यशीलता को बढ़ाया जाता है.
इसके अलावा घृत कुमारी (aloe vera), दालचीनी (cinnamon), मेथी (fenugreek), अमलकी (amla), शतावरी, अश्वगंधा, कौंछ, विदारिकंड, अशोक अत्यंत उपयोगी औषधियाँ हैं.
आयुर्वेद में अनेक प्रकार के औषधीय प्रयोगों द्वारा अंडाशय के कार्यशीलता को ठीक किया जाता है. विभिन्न प्रकार के फलाघृत का सेवन करके अंडाशय की कार्यशीलता को ठीक किया जाता है.
फलाघृत और गाय के घी के उपयोग द्वारा हार्मोनल क्रिया को सही क्या जाता है.
पंचकर्म द्वारा उपचार (Treatment Of PCOS With Panchakarma)
बस्ती: एनिमा के प्रयोग से वात को संतुलित किया जाता है. मात्रा बस्ती और उत्तर बस्ती द्वारा वात दोष का शमन किया जाता है.
वात-नाशक तेल के उपयोग से अभ्यन्गम (पंचकर्म मालिश) द्वारा शरीर से वात को संतुलित किया जाता है.
वात-नाशक बूटियों का उपयोग करके जल से स्वेदन किया जाता है.
उपनाह या पुल्टिस अथवा अरींड के तेल के पाक द्वारा सिकाई.
पी सी ओ एस में उपयोगी योगासन
सर्वांगासन
मत्स्यासन
अर्ध्मत्स्येन्द्रासन
वक्रासन
पश्चिमोत्तान आसन
सूर्य नमस्कार
उष्ट्रासन तथा अन्य पीछे की ओर झुकने वाले आसनों के अभ्यास द्वारा इस रोग में बहुत लाभ मिलता है.
साथ ही नाड़ी-शोधन प्राणायाम का नित्य अभ्यास भी बहुत लाभदायक है.
योगासन किसी योग विशेषज्ञ की देख रेख में ही करें।
कुछ ज़रूरी सुझाव
दिन में 5-6 बार मौसमी ताज़ा फलों ख़ास तौर पर जिनसे शरीर में मीठा अधिक ना बढ़े (चकोतरा, टमाटर, आड़ू, सेब) का सेवन करें.
यदि आपका मॅन अप्रसन्न रहता है तो ध्यान प्राणायाम और रुचिकार कार्य करने प्रारंभ करें. अवसाद के रहते यह बीमारी ठीक नही हो पाती.
देसी गाय के दूध से बने घृत का सेवन करना आवश्यक है.
घृत कुमारी जूस दिन में एक बार अवश्य लें.
अधिक चीनी युक्त भोजन और मिठाइयों का सेवन न करें. साथ ही तले हुए, मैदा युक्त पदार्थों का सेवन भी अहितकर सिद्ध होगा.
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प्रदीप पाई आयुर्वेदिक केंद्र
बस स्टैंड के पास पाई कैथल हरियाणा
9996250285
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