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आम की खेती

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 आम की खेती लगभग पूरे देश में की जाती हैI यह मनुष्य का बहुत ही प्रीय फल मन जाता है इसमे खटास लिए हुए मिठास पाई जाती हैI जो की अलग अलग प्रजातियों के मुताबिक फलो में कम ज्यादा मिठास पायी जाती हैI कच्चे आम से चटनी आचार अनेक प्रकार के पेय के रूप में प्रयोग किया जाता हैI इससे जैली जैम सीरप आदि बनाये जाते हैI यह विटामीन ए व् बी का अच्छा श्रोत हैI आम की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि की आवश्यकता होती है? आम की खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती हैI आम की खेती समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई तक सफलता पूर्वक होती है इसके लिए 23.8 से 26.6 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अति उतम होता हैई आम की खेती प्रत्येक किस्म की भूमि में की जा सकती हैI परन्तु अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय तथा जल भराव वाली भूमि में इसे उगाना लाभकारी नहीं है, तथा अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सवोत्तम मानी जाती हैI आम के पेड़ लगाने से पहले वो कौन-कौन सी उन्नतशील प्रजातियाँ है? हमारे देश में उगाई जाने वाली किस्मो में, दशहरी, लगडा, चौसा, फजरी, बाम्बे ग्रीन, अलफांसो, तोतापरी, हिमसागर, किशन

पामारोसा, गंधबेल घास, रोशा घास

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पामा रोसा  पौधे का परिचय  (Introduction) श्रेणी (Category)  : सगंधीय समूह (Group)  : वनज वनस्पति का प्रकार  : शाकीय वैज्ञानिक नाम  : क्य्म्बोपोगों मार्तिनी सामान्य नाम  : पामा रोसा  पौधे की जानकारी  (Information) उपयोग  :  इसका उपयोग इत्र बनाने में, विशेष रूप से तम्बाकू को स्वादिष्ट बनाने में और साबुन में सम्मिश्रण के रूप में किया जाता है। उपयोगी भाग  :  पत्तियाँ उत्पादन क्षमता  :  220-250 कि.ग्रा./हे. तेल वितरण  : पामारोजा का तेल फूलों के शूट्स से प्राप्त होता है। इसे रोसा घास या रूसा घास भी कहा जाता है और इसके तेल में उच्च सिरेप्रियल (75.90%) पाया जाता है जिसके कारण इसे जिरेनियम तेल या रूसा तेल कहा जाता है। पामरोजा का तेल सबसे महत्वपूर्ण आवश्यक तेलों में से एक हैं।    वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत   (Taxonomy) कुल  : पोऐसी आर्डर  : पोएलेस प्रजातियां  :  स्यमबोपोगन मार्टिनी स्टाँफ वर मोटिया  सी. मार्टिनी स्टाँफ वर सोफिया वितरण  : पामारोजा का तेल फूलों के शूट्स से प्राप्त होता है। इसे रोसा घास या रूसा घास भी कहा जाता है और इसके तेल में उच्च सिरेप्रियल (75.9

होली के पावन अवसर पर एवम किसान भाइयों के आग्रह पर 2020

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होली के पावन अवसर पर  एवम किसान भाइयों के आग्रह पर  मॉडल फार्मिंग प्रोजेक्ट A को नयी दर(new rate) के साथ पुनः प्रारम्भ किया जा रहा है। वास्तविक दर 25001/- जिसमे 40% छूट के साथ मात्र 15001/- में फ़सल:- 👉पीली शतावरी के 5000 पौधे। 👉अश्वगन्धा का 5 किलो बीज़। 👉अनुमानित आमदनी 3 से 5 लाख 👇👇👇👇👇👇👇 मॉडल फार्मिंग प्रोजेक्ट B वास्तविक दर 35001/- 40% छूट के बाद 21001/- में  फ़सल:- 👉सर्पगन्धा के 5000 पौधे 👉अश्वगन्धा का 5 किलो बीज़ 👉अनुमानित आमदनी 3 से 5 लाख 👇👇👇👇👇👇👇 मॉडल फार्मिंग प्रोजेक्ट C वास्तविक दर 75001/- 40% छूट के साथ 45001/- में फ़सल:- 👉अमृतावनी के 5000 पौधे  👉अश्वगन्धा का 5 किलो बीज़ 👉अनुमानित आमदनी 5 से 10 लाख 👇👇👇👇👇👇👇 लगाने का तरीका(मार्गदर्शन) और बाजार के साथ साथ प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण संस्थान की ओर से दिया जाएगा। प्रोजेक्ट के माध्यम से संस्थान  से जुड़ने पर आपको औषधीय खेती के संबंध में नयी जानकारियाँ आदि समय समय पर मिलती रहेगी। नोट:- आने वाले महीनों में दी गयी छूट इस प्रकार से होगी। फरवरी 50% (तिथ

औषधीय खेती के संबंध में मीटिंग प्रोग्राम महाराष्ट्र 2020

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"आप सभी किसान भाइयों का स्वागत है।"    🌸औषधीय खेती के संबंध में जानकारी के लिए। 🌸उसके बाजार की जानकारी के लिए। 🌸कब कौन सी फ़सल लगा कर कितना कमाया जा सकता है,यह जानने के लिए। 🌸प्रोसेसिंग और प्रसंस्करण कैसे किया जाता है यह जानने के लिए। 🌸मिश्रित खेती से एक साथ एक ही एकड़ में 2 या 2 से अधिक फसलो की खेती कर कैसे आय बढ़ाई जा सकती है ,यह जानने के लिए। 🌸कम लागत ,अधिक आय,अधिक मुनाफा किन फसलो से मिल सकता है यह जानने के लिए। 👉आइए  हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम सांगली (महाराष्ट्र) में  🙏हमसे मिलिए ....... प्रशिक्षण पंजीयन शुल्क 2100/- 👉संस्थान की स्थायी सदस्यता  एवम सैम्पल बीज़ के साथ। औषधीय फसलें-: नेपाली पिली सतावर, सफ़ेद देशी सतावर,  सफेद मूसली, अकरकरा, अशुगन्धा, सर्पगंधा,स्टीविया, अनंतमूल, कलिहारी, पपीता, सेब, चंदन, लेमनग्रास, खस, मिल्क थिस्टल, ब्राहमी आदि। बीज़/ पौधा/मार्गदर्शन/ बाजार(अनुबंद के साथ मार्केट की उपलब्धता) औषधीय खेती विकास संस्थान सभी किसान भइयो को 🙏🏻🙏🙏🙏 जिन किसान भाईयो को औषधीय जड़ी-बूटी की खेती में रुचि हो और वे जानकारी लेना

रजिस्ट्रेशन शुल्क 2100/- मात्र (एक बार) देना है। औषधीय फ़सल का बीज़ निःशुल्क दिया जाएगा।

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संस्था द्वारा दिया जायेगा औषधीय खेती विकास संस्थान द्वारा निःशुल्क औषधीय फ़सल बीज़ वितरण योजना। यदि आप सक्षम है 100 किसानों को संस्थान से जोड़ सकने में तो आपका स्वागत है। सभी 100 किसान 5 किलोमीटर के दायरे से हो। आपके द्वारा उन 100 किसानों को निःशुल्क ,समयानुसार ,संस्थान द्वारा चयनित  औषधीय फ़सल का बीज़ निःशुल्क दिया जाएगा। यह योजना फ़सल दर फ़सल चलती रहेगी। इस योजना के भागीदार बनने के लिए आप सबसे पहले स्वयं को रजिस्टर्ड करवाये एवम अपने साथ अन्य 100 किसान भाइयों का रजिस्ट्रेशन करवाये। रजिस्ट्रेशन शुल्क 2100/- मात्र (एक बार) देना है। रेजिस्ट्रेशन के लिये लिंक पे क्लिक करें 👉Referral Link : : http://akvsherbal.com/login/signup.html?ref=AKVS00047 फेसबुक ग्रुप लिंक 👉 https://www.facebook.com/groups/556248168270450/ औषधीय खेती साउथ इंडिया ग्रुप 👉 https://chat.whatsapp.com/CfzLujeE1Uz19NFnuf8cRk औषधीय खेती टेलीग्राम ग्रुप 👉 https://t.me/joinchat/L6RvuFX_zWcVo1cT9ccDVw औषधीय खेती विकास संस्थान www.akvsherbal.com औषधीय खेती विकास

कार्यशाला // रेजिस्ट्रेशन 2100/-Rs

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कार्यशाला औषधीय खेती विकास संस्थान स्वयं से जुड़े किसानों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। नित नयी जानकारियों,योजनाओ के लिए,हमरीं कार्यशाला में शामिल होने के लिए , शिक्षण प्रशिक्षण के लिए आज ही संस्थान से जुड़िये। अतिशीघ्र महाराष्ट्र जिला हिंगोली वसमत में आयोजित। कार्यशाला में पाएंगे 👉 मॉडल फार्मिंग प्रोजेक्ट का साक्षात दर्शन (जिसमे एक किसान मात्र 1 एकड़ से मात्र 6 महीने में लागत फ्री खेती करते हुए प्रति वर्ष 1 लाख एवम अनुमानित दूसरे साल 3 से 5 लाख  कमा सकता है।) 👉 औषधीय खेती में संभावनाएं विषय पर परिचर्चा । 👉 स्वतंत्र औषधीय बाजार की जानकारी। 👉 प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण 👉 आधुनिक कृषि एवं विकास के मॉडल पर चर्चा। 👉 औषधीय खेती विकास संस्थान के विद्वानों से भेंट। संस्थान से जुड़े लोगों के लिए  निःशुल्क प्रवेश, नए लोगो के लिए शुल्क मात्र 2100/-  स्वयं के साथ साथ 2 नए सदस्यो के भी रजिस्ट्रेशन करवाने पर एक एकड़ के लिए एक औषधीय फ़सल के बीज़ निःशुल्क। कृषक बंधु की रुचि हो वे जल्द से जल्द सम्पर्क करें। साथ काम करने के इच्छुक व्यक्ति भी कॉल कर सकते

पुदीना (मेंथा) की खेती

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पुदीना (मेंथा) की खेती कैसे करे मेंथा की खेती बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, लखनऊ आदि जिलों में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर की जाती है। विगत कुछ वर्षों से मेंथा इन जिलों में जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है। इसके तेल का उपयोग सुगन्ध के लिए व औषधि बनाने में किया जाता है। भूमि एवं भूमि की तैयारी मेंथा की खेती क लिए पर्याप्त जीवांश अच्छी जल निकास वाली पी०एच० मान 6-7.5 वाली बलुई दोमट व मटियारी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। खेत की अच्छी तरह से जुताई करके भूमि को समतल बना लेते हैं। मेंथा की रोपाई के तुरन्त बाद में खेत में हल्का पानी लगाते हैं जिसके कारण मेन्था की पौध ठीक लग जाये। संस्तुत प्रजातियाँ

अनंतमूल Anantmul {"Hemidesmus Indicus"}

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अनंतमूल Anantmul इसे अन्य भाषाओं में  गौड़ीसर, उत्पल सारिका, ऊपरसाल, उपलसरी, काबरबेल, धूबरबेल, कालीबेल, इंडियन सार्रसा परीला  आदि नामो से जाना जाता है। ये औषधि भारत के सभी जगहों पर पाया जाता है। विशेषकर उत्तरी भारत में अवध से लेकर सिक्किम तक और दक्षिणी भारत में ये ट्रावरकोर और सिलौंग के पहाड़ी प्रदेशों में पाया जाता है। अनंतमूल की पहचान Anantmul ki Pahchan अनंतमूल दो प्रकार की होती है एक सफ़ेद और दूसरी काली। सफ़ेद को गौरीसर और काली को कालीसर कहते है। इसकी लताये गहरे लाल रंग की होती है। पत्ते तीन-चार अंगुल लम्बे जामुन के पत्तो के सामान होते है। इन पत्तो को तोड़ने पर उनमे से दूध निकलता है। इन पत्तो पर सफ़ेद रंग की लकीरे होती है। इनके फलियों के पककर फट जाने पर इनमे से रुई निकलती है। इसकी जड़ लम्बी, गोल और टेढ़ी-मेढ़ी होती है। जड़ के ऊपर की छाल लाल रंग की होती है। जड़ के अंदर कपुरककरी के समान मनोहर सुगंध आती है। जिस जड़ो से ऐसी सुगंध आती है वही जड़े औषधि के काम लेने योग्य होती है। इसकी जड़ में एक उड़ने वाला सुगन्धित द्रव्य रहता है। इसी द्रव्य में औषधि के सारे गुण रहते है। अनंतमूल क

कंटोला / ककोड़ा / कंकेड़ा (खैक्सी) - Spine Gourd

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कंटोला / कंकेड़ा (खैक्सी) की खेती और फायदे कंटोला सदियों से भारत में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध और पोषण सब्जियों में से एक है।कंटोला गर्म और कम सर्द मौसम की फसल है। इस सब्जी की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए  27  से  32  डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है।यह सब्जी बिजाई के  70  से  80  दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है मिट्टी :  कंटोला को रेतीली दोमट और चीकनी भूमि पर  5.5  से  7.0  की  ph  में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी अच्छी तरह से जल निकासी और अच्छे कार्बनिक पदार्थों के साथ सर्वोत्तम हो। जलवायु :   कंटोला गर्म और कम सर्द मौसम की फसल है। इस सब्जी की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इस फसल को बेहतर विकास और उपज के लिए अच्छी धूप की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए  27  से  32  डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है। किस्में :   Indira kankoda i (RMF 37)  एक नई व्यावसायिक किस्म है ,  जिसे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया