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संस्था के साथ जुड़ कर लाभ लें पंजीयन मात्र 3100/-

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  सभी किसान भाइयों को प्रणाम आप सब का सहयोग और प्यार है जिसकी बदौलत आज हम   औषधीय खेती क्षेत्र में पूर्ण रूप से कार्यरत है ! संस्थान द्वारा   उच्च गुणवत्ता के बीस , पौधे , मार्गदर्शन   और बाजार तक की सुविधा दे सकने में सक्षम है ! पिछले दिनों हमने एक योजना चलाई थी जिसके अंतर्गत हम संस्थान से जुड़े किसान भाइयो को निःशुल्क बीज देने जा रहे है ! उक्त योजना की अंतिम तिथि 15  अगस्त   2021  थी ! जिसमे कई राज्यों के किसान भाइयो ने अपना पंजीकरण कराया , उनमे से कई किसान भाइयो की इच्छा है की वे अपने अन्य साथियो को भी पंजीकृत करवाना   चाह रहे है ! अतः   उनकी मांग एवं सहयोग   की इच्छा को पूरा करते हुए हम " निःशुल्क बीज वितरण योजना " को आगामी 31 अगस्त 2021  तक के लिए आगे बढ़ा रहे है ! जो भी किसान भाई उक्त योजना के अंतर्गत  3 100/- से पंजीयन करवा कर चिया , कलौंजी , तुलसी , कैमोमाइल   की खेती करना छह रहे है या संस्थान के साथ जुड़ कर आपके

कैमोमाइल की खेती

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कैमोमाइल एक ऐसा फूल है जिसे हम जादुई फूल कह सकते है इसके सूखे फूलों की बहुत मांग हैं! इसके फूलों से निकला तेल बहुत महंगा  बिकता है !इसके  सूखे  फूलों से बनी चाय जहाँ हमें स्फूर्ति देती है वहीँ इसके फूलों को नहाने के पानी में मिला कर नहाने से शरीर स्वस्थ रहता है ! *कैसे और कब करें कैमोमाइल की खेती* :- खेती की शुरुवात अक्टूबर माह में इसका बीज बो कर की जाती है , यह समय इसकी खेती के लिए बहुत अनुकूल होता है ! साथ ही खेत की जुताई करके पाटा लगाने से पहले नीम खाद व केंचुवा खाद का प्रयोग किया जाता है ! खाद का प्रयोग 500 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से किया जाना आवश्यक है !इसके बाद लगभग 1 महीने के अंतराल पर इसे प्रत्यारोपण किया जा सकता है ! कैमोमाइल के फूल के लिए भी आपको ज्यादा समय तक इंतज़ार नहीं करना पड़ता है और इसके फूलों की कटाई लगभग 25 दिन के बाद की जाती है ! इसके फूलों की कटाई कुल 5 से 6 बार होती है और वो आप 25 से 30 दिन के अंतराल में कर सकते है ! *क्यों करें जर्मन कैमोमाइल की खेती* :- कैमोमाइल की खेती में बहुत कुछ खास है!इसकी खेती पूर्णतः जैविक खेती पर आधारित है इसमें किसी भी प्रकार के कीटनाशक य

आर्टीमीसिया 'सिम संजीवनी' की खेती

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केसर की फसल

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बुआई का समय     बुआई का समय 1 जुलाई से 31  अगस्त के बीच  फसल अवधि 90 से 110  दिन  मिटटी की तैयारी व् खेत की जुताई   केसर की फसल बुवाई के समय खेत की तैयारी  के लिए तीन से चार बार जुताई पर्याप्त हैं ! अच्छी पैदावार करने के लिए कृषि यार्ड खाद और अन्य करबार्निक पदार्थों को अंतिम जुताई से पहले मिटटी के ठीक से मिलाया जाना चाहिए! छोटे संचलनीय {2mx 1mx 15Cm } उठाया बेड  अच्छे परिणाम दे सकते हैं! बेड को भी चार भागों पर किसी भी अधिक नमी का निकास करने के लिए चैनल होना चाहिए! बीज की मात्रा   DIBBLING  के लिए 15 कुंतल के घनकन्द प्रति हे. की आवश्यकता होती है ! बुआई का तरीका   घनकन्द 6 -7 सेमी गहरी लगे जाना चाहिए और 10 सेमी X 10 सेमी की दुरी को अपनाना चाहिए! उर्वरक व खाद प्रबंधन  अंतिम जुताई से पहले २० टन गोबर की खाद प्रति हे. मिटटी में डालना चाहिए! 90 किलोग्राम नाइट्रोजन और 60 किलो प्रत्येक फास्फोरस और पोटाश प्रति हे. डालना चाहिए!  सिचाई-: बढ़ती मौसम के दौरान इसे २-३ सिचाई की आवश्यकता है और यह वर्षा पर निर्भर करता है! फसल की कटाई   फूलों की यांत्रिक कटाई से परणसमुह को नुकसान होगा और प्रतिस्थापन घनकन्

औषधीय फसलें व लगाने का समय

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औषधीय फसलों के नाम व समय          👉 नेपाली पीली सतावर 18/24 माह की खेती लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 देसी सफेद सतवार 18/24 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 अनंतमूल 24 / 36 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 सर्फ़ग़ान्ध 18/20 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉🏻 अमृतावनी 24/36 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 लेमनग्रास 6 / 60 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 स्टीविया 6 / 60 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 ब्राह्मी 3 / 36 माह की खेती  लगाने का समय फरवरी से नवंबर। 👉 कस्तूरी हल्दी 9 माह की खेती  लगाने का समय मई से नवंबर। 👉 अदरक 9 माह की खेती  लगाने का समय मई से जुलाई। 👉 सफेद मूसली 8 माह की खेती  लगाने का समय जून से नवंबर। 👉 अश्वगंधा 6 माह की खेती  लगाने का समय जून से नवंबर। 👉 अकरकरा 6 माह की खेती  लगाने का समय अगस्त से नवंबर। 👉 जिरेनियम 4 माह की खेती  लगाने का समय नवंबर से जनवरी। 👉 कैमोमाइल 4 माह की खेती  लगाने का समय  नवंबर से जनवरी। 👉 मेंथा 4 माह की खेती  लगाने का समय मई से जुलाई। 👉 कालमेघ 3 माह की खेती   लगा

नि:शुल्क FPO//NGO//OTHER द्वारा 10//10 किसानों का ग्रुप बनाया जायेगा! जिसमे आपको 6 माह की फसल अश्वगंधा का बीज दिया जायेगा।

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आदरणीय किसान भाइयों ताज़ा कोरोना काल से उत्पन्न परिस्थितियो को देखते हुए औषधीय खेती विकास सन्स्थान एवम संस्थान के साथ जुड़े कारोबारी सहयोगियों ने सेवा की दृश्टिकोण से  उत्तर प्रदेश के किसान भाइयों के लिए निःशुल्क बीज़  वितरण की योजना की रूपरेखा तैयार की है,जिसे औषधीय खेती विकास सन्स्थान के सहयोग से पूरा किया जाएगा। दस्तावेहज की प्रतियां जमा करें ग्रुप की -: आधार कार्ड कॉपी  पासपोर्ट सिज़ फोटो   बैंक पास बुक कॉपी  शपतपत्र ५० रूपए के  स्टाम्प पेपर  पंजीयन 2100/- Rs इस योजना के अंतर्गत उत्तर  प्रदेश के किसान भाइयों को ही लिया जाएगा। किसी भी एक क्षेत्र ( 5 से 10 किलोमीटर के अंदर ) से 10 किसानों का ग्रुप होना अनिवार्य है। प्रत्येक किसान भाई को 5 से 10 किलो बीज़ दिए जाएंगे। खेती के लिए पूरा मार्गदर्शन/निरीक्षण दिया जाएगा। उत्पादन को सन्स्थान द्वारा  ही बाजार उपलब्ध करवाया जाएगा। इस कार्य हेतु सन्स्थान द्वारा या उनके किसी भी प्रतिनिधि द्वारा किसी भी प्रकार का शुल्क नही लिया जाएगा। किसान भाइयों द्वारा जो बीज़ का उत्पादन होगा उसे भी सन्स्थान द्वारा अन्य किसान भइयो की सहायता के लिए ही उपयो

शहद के लाभ आयुर्वेदिक नुस्खे

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शहद:- *चिकित्सीय गुणों और प्राकृतिक अच्छाई से भरपूर शहद का उपयोग बहुत पहले से ही त्वचा और हर प्रकार की शारीरिक देखभाल के लिए किया जाता है। यहाँ हमने इस चमत्कारी तत्व के 20 स्वास्थ्य लाभों को सूचीबद्ध किया है। *शहद में जो मीठापन होता है वो मुख्यतः ग्लूकोज़ और एकलशर्करा फ्रक्टोज के कारण होता है। शहद में ग्लूकोज व अन्य शर्कराएं तथा विटामिन, खनिज और अमीनो अम्ल भी होता है जिससे कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं जो घाव को ठीक करने और उतकों के बढ़ने के उपचार में मदद करते हैं।* *प्राचीन काल से ही शहद को एक जीवाणु-रोधी के रूप में जाना जाता रहा है। शहद एक हाइपरस्मॉटिक एजेंट होता है जो घाव से तरल पदार्थ निकाल देता है और शीघ्र उसकी भरपाई भी करता है और उस जगह हानिकारक जीवाणु भी मर जाते हैं। आइये जानते हैं कि शहद हमारे स्वास्थ को कैसे लाभ पहुंचाता है।* *1) त्वचा को निखारे* *शहद ह्यूमेक्टेंट यौगिक से भरपूर होता है।* *यह त्वचा में नमी को बनाए रखता है जिससे उसकी कोमलता बनी रहती है।* *2) झुर्रियों भगाए* *यह मृत कोशिकाओं को दूर करता है और झुर्रियों को आने से रोकता है।* *3) घाव को जल्द भरे* *शहद के एंटीबैक्टीरियल

शरदपूर्णिमा की रात्रि में स्वास्थ्य प्रयोग. आयुर्वेदिक नुस्खे

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*🌹शरदपूर्णिमा की रात्रि में स्वास्थ्य प्रयोग...🌹* *🌹शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है । ये किरणें स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायी हैं ।* *🌹इस रात्रि में शरीर पर हल्के-फुल्के परिधान पहनकर चन्द्रमा की चाँदनी में टहलने, घास के मैदान पर लेटने से त्वचा के रोमकूपों में चन्द्र-किरणें समा जाती हैं और बंद रोम-छिद्र प्राकृतिक ढंग से खुलते हैं । शरीर के कई रोग तो इन चन्द्र-किरणों के प्रभाव से ही धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं ।*  *🌹इन चन्द्र-किरणों से त्वचा का रंग साफ होता है, नेत्रज्योति बढ़ती है एवं चेहरे पर गुलाबी आभा उभरने लगती है । यदि देर तक पैरों को चन्द्र-किरणों का स्नान कराया जाय तो ठंड के दिनों में तलुए, एड़ियाँ, होंठ फटने से बचे रहते हैं ।* *🌹चन्द्रमा की किरणें मस्तिष्क के लिए अति लाभकारी हैं । मस्तिष्क की बंद तहें खुलती हैं, जिससे स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है । साथ ही सिर के बाल असमय सफेद नहीं होते हैं ।* *🌹दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्रकिरणें और ओज के कण समा जाते हैं । सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों म

किडनी रोग आयुर्वेदिक नुस्खे

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*💥यदि आप या आपका कोई परिचित  किडनी रोग से पीड़ित है और डायलिसिस से बचना चाहते है।💥* *👉जैसे क्रिटेनिन,यूरिया का बढ़ना,हीमोग्लोबिन व G.F.R कम होना,हाथ,पैर व चेहरे में सूजन,कमजोरी,सांस फूलना,कब्ज रहना,ब्लड प्रेशर बढ़ना, पेशाब में जलन व(रुकावट) कम आना,बार बार मूत्र आने का अहसास,कमरदर्द,व भारीपन,मूत्र में प्रोटीन व रक्त आना,खून की कमी,पथरी आदि लक्षण है तो हमारे टीम के डॉक्टर्स से सलाह अवश्य ले।।* *👉डायलेसिस के साथ भी औषधि का प्रयोग कर सकते है।।अधिक लाभ होगा!* *👉आहार व हल्की जीवनशैली के परिवर्तन और आयुर्वेदीक(हर्बल प्राकृतिक चिकित्सा)द्वारा क्रिटेनिन लेवल कम होने लगता है व अन्य समस्या भी धीरे धीरे कम होने लगती है।* *औषधालय में निर्मित दवा जिसमें मुख्य औषधि है जैसे वरुण,कुटकी,गोखरू,रोहितका, कालमेघ,सौंफ,त्रिफला,निम,मकोय,पुनर्नवा,इत्यादि जड़ी बूटियों से बनी दवा का आप इस्तेमाल कर सकते है।।जो ऊपर लिखित सब समस्याओं का समाधान करेगी।।* *अपनी रिपोर्ट भेजे हमे ,किडनी रोगियों के लिए यह दवा किसी वरदान से कम नही है।।यह दवा लिवर रोगों में भी अच्छा काम करती है किडनी रोग के साथ साथ।* *ध्यान रखे कि:-गुर्दे(

पी सी ओ एस (PCOS-Polycystic Ovarian Syndrome) आयुर्वेदिक नुस्खे

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पी सी ओ एस  (PCOS-Polycystic Ovarian Syndrome) इस बीमारी का कारण वास्तव में नही पता चला है. परंतु आजकल की भागदौड़ भरी दुनिया में स्त्रीयो में यह रोग बढ़ता जा रहा है. आम तौर पर पाया गया है जिन स्त्रीयो में हार्मोन संबंधी असंतुलन पाया जाता है उनमें यह तकलीफ़ विशेष रूप से देखने को मिलती है. पी सी ओ एस के रोग में महिलयों की अंडाशय (ovaries) से अंड्रोगेन यानि कि मर्दों में पाया जाने वाला हारमोन अधिक मात्रा में बनता है. इसका संबंध इंसुलिन हॉर्मोन (insulin hormone) के असंतुलित रूप से स्रावित होने को भी माना जाता है. इस रोग से ग्रस्त महिलयों की ओवारीस में बहुत सारी सिस्ट्स (cysts) अर्थात की झिल्लियाँ पाई जाती हैं. ये झिल्लियाँ अगर बढ़ कर तैयार अंडकोषों के ऊपर भी बन जाएँ तो इससे मासिक स्राव में रुकावट और बांझपन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है. माना जाता है की जो स्त्रीयाँ बहुत अधिक तनावग्रस्त होती हैं या फिर जो रात्रि में ठीक से सो नही पाती, उनमें इंसुलिन हॉर्मोन के असंतुलन के साथ-साथ यह बीमारी होने की संभावना भी अधिक होती है. पी सी ओ एस के लक्षण:- मुहाँसे, तैलीय त्वचा अंडाशय का आवश

हैंड सेनेटाइजर आयुर्वेदिक नुस्खे

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हैंड सेनेटाइजर  ============ अब इनसे कोरोना का वायरस मरता भी है या नहीं पता नहीं, लेकिन इसकी बिक्री बेहद बढ़ चुकी है। टीवी पर आने वाले डॉक्टर गर्म पानी या नींबू के रस से हाथ धोना भी बता सकते थे हम ग़रीब देश के वासियों को लेकिन कोई बताएगा नहीं। क्योंकि यहाँ भी लोगों प्रोडक्ट बिक्री करनी है। दो रुपये का नींबू साथ रखिये, उसे थोड़ा सा ऊपर से काट लें। अब जब भी ज़रूरत हो उसकी कुछ बूंदें हाथ पर टपकाएं और उससे हाथ साफ करलें...  यक़ीन कीजिए यह उतना ही असरदार है जितना कि 600 रुपये लीटर के टीवी स्क्रीन पर 99% जर्म्स मारने वाले ब्रांडेड हैंड सेनेटाइजर... यकीन कीजिए ये बहोत असरदार होता है.. 🙏🙏 किसी भी प्रकार की समस्या से छुटकारा पाने के लिए संपर्क करें :- प्रदीप पाई आयुर्वेदिक केंद्र  बस स्टैंड के पास पाई (कैथल) हरियाणा  9996250285

शीशम पेड़ के लाभ व आयुर्वेदिक नुस्खे

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शीशम का पेड़ नीम का पेड़ खूब लगाके की जल्दी बढे इसलिये सोचा इसके बारे में भी बतायें आजकल शीशम में कोई रोग भी लग रहा सूख रहे शीशम (Shisham Tree In Hindi) की लकड़ी भवनों और फर्नीचर के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष की लकड़ी और बीजों से एक तेल निकाला जाता है, जो औषधियों में प्रयोग किया जाता है। कई पौराणिक ग्रंथों में इसके बारे में बताया गया है। शीशम की निम्नलिखित प्रजातियों का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता हैः- शीशम (Dalbergia Sissoo Roxb. ex DC) इसका वृक्ष लगभग 30 मीटर तक ऊंचा मध्यमाकार होता है। इसकी छाल मोटी, भूरे रंग की तथा दरारयुक्त होती है। इसके फूल पाण्डुर पीले रंग के तथा छोटे होते हैं। कृष्णशिंशप (Dalbergia latifolia Roxb.) यह 15-20 मीटर ऊंचा पर्णपाती वृक्ष होता है। जिसकी शाखाएं चिकनी होती हैं। इसके फूल 5-10 मीटर लम्बे गुच्छों में और मटमैले सफेद रंग के होते हैं। इसकी छाल तथा पत्तियों का उपयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। शीशम के उपयोग से वीर्य विकार, कुष्ठ रोग, घाव से होने वाली जलन, सूजन, उल्टी, खून से संबंधित रोग, हिचकी आदि रोगों में फायदा प्राप्त किया जा सकता है। अनेक

पपीता खाने का लाभ और आयुर्वेदिक नुस्खे

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पपीता  पपीता बहुत ही लाभकारी फल है पपीता के पेड़ देख दिल खुश हो जाता बहुत जल्द फल देते और डेंगू जैसे बीमारी में इसके पत्ते बहुत काम आते हैं । पपीता का परिचय :-- पपीता एक ऐसा फल है जो बहुत ही आसानी से कहीं भी मिल सकता है। यहां तक कि आप घर के आस-पास थोड़ी-सी जगह होने पर वहां भी लगा सकते हैं। पपीता को कच्चा या पका दोनो अवस्थाओं में खा सकते हैं। कच्चा हो या पका पपीता के औषधीय गुणों के कारण ये कई बीमारियों के लिए उपचारस्वरुप प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में पपीता के पौष्टिक गुणों के कारण इसको दांत और गले के दर्द के साथ-साथ दस्त, जीभ के घाव, दाद, सूजन जैसे अनेक बीमारियों के लिए औषधि के रुप प्रयुक्त किया जाता है। चलिये आगे इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। पपीता क्या है :--- जैसा कि पहले ही चर्चा की गई कि पपीता का पेड़ हल्के छोटे और आसानी से उगने वाले होते हैं। इसके फल विभिन्न आकार के, गोलाकार अथवा बेलनाकार, कच्ची अवस्था में हरे तथा  पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। फलों के अन्दर काले धूसर रंग के गोल मरिच जैसे बीज रहते हैं। इसकी फलमज्जा पकने पर पीली तथा मीठी होती है। इस पौधे के किसी भी

लिसोड़ा(Cordia myxa) के लाभ आयुर्वेदिक नुस्खे

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लिसोड़ा(Cordia Myxa) यह एक विशाल पेड़ होता है जिसके पत्ते चिकने होते है, बचपन में अक्सर इसके पत्तों को पान की तरह ,सेमल के कांटे के साथ चबाते थे,तो मुंह पूरा लाल हो जाता था....। इसकी लकड़ी इमारती उपयोग होता है...इसके बड़े पेड़ के तने  अधिकांश खोखले दिखाई पड़ते हैं,जिनका मुख्य कारण इसके गोंद के कारण पनपने वाले कीट होते हैं...। इसे रेठु,लसोड़ा,गोंदी,निसोरा, गोधरी, भेनकर, शेलवेट आदि कहते हैं, हालांकि इसका वानस्पतिक नाम #कार्डिया_डाईकोटोमा है.......। इसके कच्चे फलों की सब्जी और अचार भी बनाया जाता है...इसके फूलों (मोड़) की स्वादिष्ट सब्जी बनती है...इसके पके फल बड़े मीठे और बहुत चिकने लगते है...इसके फल से गोंद जैसा चिकनाहट निकलती है शायद इसी कारण इसे गुन्दा कहा जाता है  #लिसोड़ा नम और सूखे जंगलों में बढ़ता है। इस पर लगने वाले फलों को गुँदे कहा जाता है। ये छोटे मीठे तथा गोंददार होते हैं। इसे 'डेला' भी कहते हैं।इसकी जन्मभूमि दक्षिण पूर्व चीन, भारत, हिमालय, हिन्द चीन आदि स्थल। इससे जाहिर होता है कि लसोड़ा उत्तराखंड में हजारों साल से पाया जाता है। यह  हरियाणा,हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष